गुरुवार, 12 मार्च 2009

दोस्ती !


कितनी अजीब है , ये दोस्ती !
दो आत्माओ के बीच , एक शरीर है , ये दोस्ती !
एक अनोखा बन्धन है , दोस्ती
मेरे शरीर की धमनियों का स्पंदन है , ये दोस्ती !
मेरी मित्र है वो पर , दुनिया से थोडी विचित्र है , वो
जिस पर दुनिया की नज़र है, उसके लिए वो बिल्कुल बेअसर है|
हर चीज़ पर उसकी पकड़ है , हर किसी पर उसकी जकड है|
मैं देखकर उसे जी लेती हूँ !
और कभी - कभी अपने ही आंसू ,
हँसकर पी लेती हूँ!
उसके विचारो से लगता है ,ये आधी ज़मी भी मेरी है
ये आधा आसमा भी मेरा है और व्यक्ति जब ये ठान ही ले ,
तो कर लेता हर जगह सवेरा है!
मैं हर नई सुबह जागती हूँ ,
और कॉलेज में उससे मिलने को भागती हूँ ,
अपनी बात बताती हूँ उसे, उसकी
बात समझ जाती हूँ मैं!
हर चीज़ में संतुष्टि समाई है उसकी ,हर चीज़ में नाज़कात उभर के आई है उसकी
इस दिल की अभिलाषा इतनी ,
बन पाऊ परछाई उसकी !
बहुत सुंदर उसकी काया है, उससे भी सुंदर छाया है!
कुदरत की अदभुत माया है ,और बस इतना ही
की अपने जीवन का सच्चा आदर्श मैंने, उसी में पाया है!
उसके बोल मेरी आत्मा में घुलके, जीने की तमन्ना पैदा करते है ,
वो कहती रहे मैं सुनती रहू खुदा से बस इतनी ही दुआ करते है !
वो एक ऐसा दर्पण है ,जिसपर मेरा सर्वस्व समर्पण है ,
ईश्वर पर चढ़े उस फूल की तरह ये जीवन उसको अर्पण है!
मैं जैसी अपने भीतर हूँ वैसे ही ख़ुद को पाती हूँ ,
अपने भीतर की कमियों को सहजता से जान जाती हूँ
मैं शुक्रगुजार हूँ उसकी जिसने दोस्ती जैसी चीज़ बनाई ,
ये दोस्ती उतनी ही पाक है ,जितनी खुदा की खुदाई,
इस दुनिया में बहुत खुश नसीब हूँ मैं जो तुम जैसी मैंने दोस्त है पाई !

1 टिप्पणी:

mark rai ने कहा…

dosti khuda ka vardaan hai....

aapane kaaphi achhe tarike se dosti ko define kiya hai...