शनिवार, 23 मई 2009

एक कहानी

एक कहानी मैं लिखती हू , एक कहानी तू भी लिख !
बादल बादल मैं लिखती हू ,पानी पानी तू भी लिख|

बीत गई जो अपनी यादें,उन यादों को भी तू लिख!
एक निशानी मैं लिखती हू, एक निशानी तू भी लिख|

इस कलम में डाल के स्याही, लिख दे जो मन में आए!
नई कहानी मैं लिखती हू ,एक पुरानी तू भी लिख |

जीवन की इस भाग दौड़ में, क्या खोया तुमने हमने?
एक जवानी मैं लिखती हू, एक जवानी तू भी लिख |

हर व्यक्ति में छिपा हुआ है,वादी भी प्रतिवादी भी!
सारी सजाए मैं लिखती हू, काला पानी तू भी लिख |

शुक्रवार, 8 मई 2009

रिश्ता.......

इस ज़िंदगी इस ज़माने में , कोई मिलता है ,कोई बिछड़ता है !
इस मिलने बिछड़ने की कशमकश में ही तो ,कोई न कोई रिश्ता पिछड़ता है!
रिश्ता बनाना तो आसन हो जाता है ,हमारे लिए
फिर क्यों ? वो रिश्ता सिकुड़ता है !
बस ठंड से कापते उस बच्चे की तरह ,वो रिश्ता यूही ठिठुरता है !
उस ठिठुरते रिश्ते पर, कोई और रिश्ता अपने रहमो करम की चादर को तो ढकता है !
लेकिन ..........
फिर भी उस चादर में से बारिश का पानी बूँद बनकर टपकता है !
ज़िंदगी में हर चीज़ को यू आसानी से पा लेना आसन तो नही होता ,
लेकिन ज़िंदगी है ,और इस ज़िंदगी में हर कोई हर किसी चीज़ के लिए भटकता है !
रिश्ता बनने की आस तो हर मन में होती है ,
लेकिन ............
जब रिश्ता टूटता है, तो फिर क्यों एक बूँद आंसू आंख से टपकता है !जी हा बिल्कुल वैसे ही ,
जैसे तेज़ भूख से एक छोटा बच्चा बिलखता है !
यह भूख न जाने कब शांत होगी ? बड़ा मुश्किल सवाल यह लगता है !
और
जीवन मेरा क्यों मुझे एक जंजाल सा लगता है ? इस जंजाल से निकलने को अब मेरा मन भी करता है !
लेकिन .............
रस्मो की दीवारों से फिर मेरा मन क्यों डरता है ?
शायद इसी लिए तो इस मिलने बिछड़ने की कशमकश में कोई न कोई रिश्ता पिछड़ता है !