गुरुवार, 5 मार्च 2009
जिंदा लोग ???
मेरे घर के बगल में ,पड़ोसी की मौत हो गई
व्यवहारिकता के नाते ,मैं भी वहां गई
वहा जाकर देखा
कुछ बुद्धिजीवी लोग, कह रहे थे की
जो इस दुनिया - संसार में आया है, उसे जाना ही होगा
और
जो पीछे छूट गया उसे अपना कर्तव्य निभाना ही होगा
जीते जी की हाय हाय है ,भाई
और सब चल दिए ये कहते
राम नाम सत्य है ,भाई
राम नाम सत्य है
और मैं खड़ी बस यही सोचती रह गई कैसे होते है ये जिंदा लोग ?
कही ये वो लोग तो नही
जिनके सामने एक आदमी दूसरे को मारकर निकल जाता है
और यह मुह खोले
केवल ताली बजाकर रह जाते है
पूछने पर कहते है ,की
हम नही थे , हमने नही देखा और [फिर पकड़ कर पतली गली
निकल पड़ते है ,गोली की तरह |
या कही ये वो लोग तो नही जो ये जानते है , की
बाल मजदूरी कानूनन जुर्म है
मगर फिर भी
पकड़ लाते है, बच्चो को पशुओ की तरह और बाँध देते है
घर के खूटे से
जैसे हलाली से पहले बकरा
जी हाँ सही सुना आपने
हलाली
उनके बचपन की
उनके सपनो की |
अरे !कही ये वो लोग तो नही जो औरत को बच्चा जनने की मशीन
और बच्चो को उससे पैदा होने वाला
पसंदीदा उत्पाद समझते है
पहले बेटी नही , बेटा होना चाहिए
अगर गलती से
बेटी हो भी गई तो छोड़ आते है , उसे
किसी नुक्कड़ या चौराहे पर पलने के लिए या
मरने के लिए |
फिर सोचा कही ये वो तो नही जो
अपनी शारीरिक हवस के लिए किसी भी
बहेन- बेटी और माँ को निशाना बनने से नही चूकते और
इनके अंधे नशे का आलम तो देखिये
जब इनकी घिनौनी भूख शांत हो जाती है, तो फिर
बैठ जाते है
नकली मुखौटा लगाकर
चेहरे पर नए शिकार के लिए|
थोड़ा और सोचा तो लगा
कही ये वो तो नही , जो ये जानते है की
देश एक बार फिर से गुलामी की बेडियों में फसता जा रहा है
लेकिन फिर भी झूम रहे है ,पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में
या
कही ये वो तो नही ,जो एक भूखे की रोटी छीनकर खुश होते है,
और
अपने पालतू कुत्ते को जी भर के
खिलाने के बाद !
ये कहते नही थकते ,
इंसान से वफादार तो जानवर होते है |
अगर ऐसे होते है, ये जिंदा लोग तो इससे बेहतर तो मैं मृत प्राय रहना ज्यादा पसंद करुँगी
क्योकि सोते हुए को उठाना आसन है
लेकिन
जो जागकर भी नींद में सोया है
उसे उठाना बहुत मुश्किल है
सही कहा था उसने , राम नाम सत्य है
क्योकि
राम नाम तो तर गया है,
मगर
अफ़सोस
मनुष्य जीते जी भी मर गया है |
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
आपकी कविताएं नयी लगीं। बेहतर प्रयास है, उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ बधाई।
is kavita ko padhkar ek pankti yaad aa gayi....
"Maut hi insan ka dushman nahi
Jindagi bhi jaan lekar jayegi."
Nirmal Verma ki ek pankti yahan udharit karna chaunga jo unhone apni kitab "Antim Aranya" main likha hai ki...
" Kya budha(old)hona apne aap ko khali karne ki prakriya hai....yadi nahi to honi chahiye....kyonki jab log tumhare shav ko jalane ke liye rakhein to jyada samay na lage..........
Apki rachna pasand aayi...
kuchh bhav mere man main bhi aye par abhi unhein pannon tak aane main kuchh waqt lagega.
Un aajanme bhavon ke liye aapko dhanyawad.
एक टिप्पणी भेजें