सोमवार, 23 मार्च 2009

अगर तुम औरत हो !

अगर तुम
औरत हो ?
तो जब तुम सड़क पर
चलोगी ,
तो लोग तुम्हे मुड मुड़कर
जरूर देखेंगे !
अपनी आँखों से तुम्हारे
कपड़े नोचकर
अन्दर जरूर झाकेंगे !
कुछ पीछे भी आयेंगे !
कुछ मनचले आशिकी के
गाने भी गाएंगे ,
अब ये तुम्हारे ऊपर है ,
की तुम
अपने रास्ते पर आगे चलोगी
या फिर
उनके डर से
अपनी राहे ही बदल लोगी ???

3 टिप्‍पणियां:

जयंत - समर शेष ने कहा…

आपकी कविता पढ़ कर अपनी कविता की एक पंक्ति से उत्तर देता हूँ...
"पग में चुभते काटों से डर,
बढ़ते कदमों को रोके क्यों?
इच्छा शक्ति की अग्नि से,
उन्हें हम जलाते क्यों नहीं??"

बहुत सुंदर विचोत्तेजक बात कही है आपने।
विजय उसी की होती है, जो अंधेरे में जलाए ज्योति है....
~जयंत

अनिल कान्त ने कहा…

ek sach likha hai aapne

नवनीत नीरव ने कहा…

kavita achhi hai par is samaj mein achchhe log bhi hain. unka kya drishtikon rahta hai use bhi sath -sath koshish kartin to jyada behtar hota.
Navnit Nirav