शनिवार, 14 मार्च 2009

हाँ मैंने सुना था !!!



हाँ मैंने सुना ,किसी को
ये कहते हुए !
क्यों ? आई वो धारा पर
कैसे ? आई वो धारा पर
जब कोई देखना ही नही चाहता ,
तुझे हँसते हुए !

हाँ ! मैंने सुना
माँ ,
की कोख में ही
बैठे हुए ,
अपने पिता को
उससे
ये सब कहते हुए ,
की जब उन्होंने मेरे बारे में जाना
अपना सर पीट
ख़ुद को अभागा माना !
इस बार भी पड़ेगा ,
ये बच्चा गिराना ,
हाय ! माँ
उन्होंने
ख़ुद को कितना अभागा माना |

मगर
तू तो मुझसे
पल - पल जुड़ी थी ?
माँ
मुझे बता
मेरा तेरी कोख में होना
तेरे लिए कैसी घड़ी थी ?

माँ
मगर मैं
जानती हूँ
तू भी बाबूजी के साथ ही खड़ी थी
क्योकि
अगर तेरी ममता मेरे पास होती
तो
आज मैं
माँ
तेरे ही साथ होती |

हाँ मैंने सुना !
तुझे भी ये कहते हुए ,
बेटा वंश बेली को आगे बढ़ाएगा !
इसे तो कोई दूसरा अपने घर ले जायेगा !
फिर
हमारा अपना यहाँ कौन रह जायेगा !
हाँ !
हाँ !
बेटा ही वंश को आगे बढ़ाएगा

लेकिन
बापू
एक बार मुझे अपनी गोद में खिलाया तो होता !
माँ मुझे एक बार अपना दूध पिलाया तो होता !
अपनी ममता से मुझे भी सहलाया तो होता !
बस मैं जोड़ लेती
तुझसे अपना रिश्ता
जिसे फिर कोई ना तोड़ पाता !

बस
एक बार ,
प्यार से ,
मुझ अभागी को अपनाया तो होता !


मगर अब काँप उठता है ,
मन
सिर्फ़
ये सोचते हुए ,
हाँ मैंने सुना था !
उन्हें ये कहते हुए
क्यों आई वो धरा पर ?
कैसे आई वो धारा पर ?

जब कोई देखना ही नही चाहता तुझे हँसते हुए !

12 टिप्‍पणियां:

mark rai ने कहा…

बापू .......
एक बार मुझे अपनी गोद में खिलाया तो होता
माँ मुझे एक बार अपना दूध पिलाया तो होता
अपनी ममता से मुझे भी सहलाया तो होता ...
.... ये दर्द बयां नही कर सकता । केवल महशुश कर सकता हूँ ।
..... पता नही ऐसा क्यों हुआ ? नही जानता ।
सुन्दर रचना है लिखते रहें। ....

नवनीत नीरव ने कहा…

Main is kavita ko padh kar jadwat sa ho gaya hoon.Yeh gatnayein hamare yahan har roj hoti hai aur hum darshak ki bhanti tamasha dekhte rahte hai.
Mera maan ab nahi lagta is sansar main,
jahan payar to log kathe hain
par nishaniyan mita dete hain.
Par isi asha ke sath lage hain ki shayad log is baat ko samajh jayein.
Yah jaan kar man ko sukun milta hai ki kuchh log is ke kilaph jagrukata main lage hain.
ek achchhi aur hridaysprshi rachana ke liye dhanyawad.

Udan Tashtari ने कहा…

बार बार इस दर्द को पढ़ा और क्या कहूँ: अद्भुत अभिव्यक्ति!! लिखती रहो, शुभकामनाऐं.

बेनामी ने कहा…

दर्द, भावनाओं का, एहसास का, उपस्थिति का, संवेदना का.
गहरा भाव है सम्पूर्ण संवेदना के साथ.

लिखती रहिये.
शुभकामना

Batangad ने कहा…

बेहद संवेदनशील

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा ने कहा…

रिचा, अच्छी कविता है। खासकर जब कोई देखना ही नही चाहता तुझे हँसते हुए !
अभी-अभी हमारे आका तरुण सर ने इस ब्लॉग स मुझे परिचित करवाया।
आप ऐसा करें पहले वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें, ताकि लोग दिल खोलकर कमेंट कर सकें।
शुक्रिया..अब आना जान लाग रहेगा।य़

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

ऋचा.........बहुत ही मार्मिक बन पड़ी है तुम्हारी कवित..........और यों भी सच तो मार्मिक ही होता है...बहुत ही कडा......!!

अनिल कान्त ने कहा…

आपने बहुत मार्मिक लिखा है ...आँखें नम हो आयी

जयंत - समर शेष ने कहा…

आंखों में आंसू आ गए इस चित्रण को पढ़ कर।
अत्यन्त मार्मिक और बहुत बड़ा संदेश लिए है यह कविता.
~जयंत

pooja ने कहा…

har rachna ki tara ye b bahut aachi rachna haa........
keep it up aacha likhte raho

Sanju ने कहा…

your's all poems r realy masterpieces and i do believe that one day u will be one of the best poet of India my wishes were always with u,my wishes are always with u and my wishes will be always with u go.

सुशील छौक्कर ने कहा…

बहुत ही मार्मिक लिखा है। सच को बेहतरीन शब्द। काश वो दिन जल्दी आए जब इस विषय पर नही लिखा जाए।
लेकिन
बापू
एक बार मुझे अपनी गोद में खिलाया तो होता !
माँ मुझे एक बार अपना दूध पिलाया तो होता !
अपनी ममता से मुझे भी सहलाया तो होता !
बस मैं जोड़ लेती
तुझसे अपना रिश्ता
जिसे फिर कोई ना तोड़ पाता !

मार्मिक।